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छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी

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छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी

राजकुमार केसवानी

आज एक गुड़िया की बात करते हैं. एक नन्ही-मुन्नी, छोटी सी-प्यारी सी गुड़िया. गुड़िया गाती थी. खूब प्यारा-प्यारा गाती थी. जब दुनिया ने पहली बार उसका गाना सुना तो बिना गले वाले भी गाने लगे. नाच का ना तक न जानने वाले भी नाचने लगे. 1980 के इस साल में चारों तरफ उसका गीत भीनी-भीनी ख़ुशबू बनकर हर घर में महकने लगा. लोग जब एक दूसरे से दुआ-सलाम करते तो यह ख़ुशबू फिर से गीत बनकर गूंजने लगती ‘आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी मे आए, तो बात बन जाए’.

बिल्कुल सही. मैं नाज़िया हसन की ही बात कर रहा हूं. 1980 में फिरोज़ ख़ान की फिल्म ‘क़ुरबानी’ के सर्वाधिक सफल गीत की गायिका. उम्र 15 साल. शक्लो-सूरत उस गुड़िया से मिलती-जुलती जिसे बचपन में कभी एच.सी.जरीवाला के बड़े से शो रूम में कांच की दीवार के साथ बस हमेशा दूर से ही देखता रहा. आवाज़ ऐसी कि सुनकर लगे कि बस अब सारे सपने सच होने वाले हैं.

ऐसी माया और ऐसी काया लेकर अवतरित हुई नाज़िया का छोटा सा जीवन सचमुच इस संसार की सरंचना की कई परतों को खोलकर दिखा देता है. एक तरफ इतनी छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी सफलता तो दूसरी तरफ उसी जीवन के अगले ही कदम पर जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी से सामना. नाकाम शादी , उस पर फेफड़े का कैंसर और भरी जवानी मे मौत. ऐसे जीवन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें या फिर सवाल करें कि आख़िर इस खेल से तुझे हासिल क्या होता है?

‘…लेकिन मेरा दिल, मेरा दिल रो रहा है’

मुझे माफ कीजिएगा लेकिन मेरा दिल नाज़िया को नाज़िया से ज़्यादा गुड़िया की तरह याद करता है, सो मुंह से बार-बार गुड़िया ही निकलता है. तो ख़ैर, किस्सा यूं कि नाज़िया का जन्म हुआ 3 अप्रेल 1965 को कराची, पाकिस्तान में. पिता बशीर हसन पाकिस्तान के एक बड़े कारोबारी तो मां मुनीज़ा हसन समाजी कामों के लिए खासी मशहूर औरत थीं.
नाज़िया कच्ची उम्र से ही गीत-संगीत की दुनिया से जुड़ गई. अपने घर-आंगन में छोटॆ भाई ज़ोहेब के साथ गाती-गुनगुनाती नाज़िया इसी दौर में टेलीविज़न के पर्दे पर जा पहुंची. पाकिस्तान के मक़बूल संगीतकार सुहैल राणा 1968 से पाकिस्तान टीवी (पीटीवी) पर बच्चों का एक संगीत शो ‘कलियों की माला’ के नाम से चलाते थे. 1972 में महज़ सात साल की उम्र से ही भाई-बहन की इस जोड़ी को सुहैल राणा जैसे बड़े संगीतकार की सरपरस्ती मिल गई.

संगीत को लेकर घर में कोई रोक-टोक की बात तो न थी लेकिन पढ़ाई-लिखाई को लेकर मां-बाप और बच्चे ख़ुद भी बहुत ज़्यादा सजग थे. सो संगीत के साथ ही पढाई भी डटकर चलती रही. वह भी लन्दन में. जब दुनिया नाज़िया हसन के डिस्को गीत गा-गा कर दीवानी हो रही थी, यह गुड़िया, ख़ामोश एक कोने मे बैठी अपनी पढ़ाई कर रही थी. इसी लगन के नतीजे मे उसने मास्टर्स डिग्री के साथ ही साथ कानून की पढ़ाई की और ला की डिग्री भी हासिल की.

यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि 1980 में जब फिल्म ‘क़ुरबानी’ रिलीज़ हुई और नाज़िया का गीत ‘आप जैसा कोई’ बाज़ार मे आया उस समय गुड़िया की उम्र कुल मिलाकर 15 साल की थी और वह लन्दन के एक स्कूल मे पढ़ रही थी.

हुआ कुछ यूं था कि फिरोज़ ख़ान उन दिनो फिल्म ‘क़ुरबानी’ बना रहे थे. लन्दन में एक पार्टी के दौरान नाज़िया से उनकी मुलाक़ात हुई. उसकी आवाज़ सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए. हालांकि फिल्म में संगीत कल्याणजी-आनन्दजी का था फिर भी एक गीत के लिए फिरोज़ खान ने भारतीय मूल के संगीतकार बिड्डू को अनुबन्धित कर लिया था. लिहाज़ा उन्होने बिड्डू और नाज़िया की जोड़ी बना दी. और इस जोड़ी ने मिलकर जो कुछ किया वह इतिहास है.

बिड्डू अप्पैया मूलत: कर्नाटक के रहने वाले हैं. संगीत में अपनी मह्तवाकान्क्षाओं को साथ लेकर लन्दन में जा बसे थे. कामयाबी भी ख़ूब हासिल हुई. 70 के दशक में उन्होने टीना चर्ल्स, जिम्मी जेम्स और कार्ल डग्लस जैसे प्रसिद्ध गायकों के लिए गीत रचकर अपनी धाक जमा ली थी. डिस्को संगीत के लिए वे खासे मशहूर थे.

फिल्म ‘क़ुरबानी’ में यूं तो लगभग सभी गीत हिट थे लेकिन इस ‘आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आए, तो बात बन जाए’ जैसी मक़बूलियत और शोहरत किसी दूसरे गीत को नहीं मिली. इस एक गीत से गीतकार इन्दीवर को भी एक नई इमेज मिली. फिरोज़ खान को आशा से ज़्यादा सफलता. भारत और पाकिस्तान के लोगों को एक साथ, एक सुर में गाते हुए, एक दूसरे को प्यार से देखने की वजह मिली. पाप गीतों को समाज में इज़्ज़त और डिस्को वालों को बेहतर बिज़नेस मिला. ढेर सारे नए गायकों को उम्मीद की नई किरण दिखाई दे गई. इसी के नतीजे में कोई एक दर्जन नए गायक अपनी-अपनी तरह के डिस्को गीत लेकर मंज़र पर उभर आए.

और नाज़िया ? नाज़िया तो शायद यह गिन भी नहीं पा रही थी कि आख़िर वो सातवें आस्मान पर पहुंच गई है या ग्यारहवें पर. लेकिन उसे इतना पत्ता था कि उसकी दुनिया ज़मीन पर ही है लिहाज़ा आस्मान को उसने कभी अपने वज़न का अहसास तक न होने दिया. पन्द्रह साल की स्कूली बच्ची ने अपनी किताबें थामे-थामे, गीत गाते-गाते अपने सफर को आगे बड़ाया.

‘आप जैसा कोई’ की रिकार्डिंग लन्दन में ही हुई थी. भारतीय फिल्म इतिहास का यह पहला गीत था जिसकी रिकार्डिंग 24 ट्रैक पर हुई थी. बिड्डू ने इस गीत के साथ हिन्दी सिने संगीत में एक नई बीट और एक नई रिदम का तोहफा दिया. नाज़िया को इस गीत के लिए उस साल का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला.

इस अप्रत्याशित सफलता के फौरन बाद ही बिड्डू और नाज़िया की टीम ने एक और एल्बम पेश कर दिया. इस बार नाज़िया के साथ उसका भाई ज़ोहेब भी था. ज़ोहेब ने इस एल्बम के आधे गीतों की धुने बनाईं, कुछ गाए और कुछ लिखे भी थे. 1981 में जारी इस एल्बम का नाम था – डिस्को दीवाने. इस एल्बम ने हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ डाले. ख़ासकर नाज़िया का गाया टाईटल गीत ‘डिस्को दीवाने हैं ‘ तो घर-घर, गली-गली और डिस्को-डिस्को गूंज रहा था.

इस एल्बम में कुल जमा दस गीत थे. ‘आओ ना डांस करें’, ‘डिस्को दीवाने हैं’, ‘तेरे कदमों को चूमूंगा, मुझे तू पास आने दे’ और ‘मुझे चाहे न चाहे’ (ज़ोहेब के साथ), ‘दिल मेरा कहता है ये तुम मेरे हो’ वग़ैरह. लेकिन इस एल्बम में मेरा सबसे पसन्दीदा गीत रहा है ‘लेकिन मेरा दिल, मेरा दिल रो रहा है.’ इसमे लफ्ज़ों की अदायगी और धुन का कमाल है. पहले तो ‘लेकिन’ का उचारण जो अपने अर्थ की तरह ऊपर ले जाकर नीचे गिरा देता है. दूसरा ‘लेकिन मेरा दिल’ के बाद गिटार का एक तोड़ आकर ‘दिल रो रहा है’ को अलग भाव दे देता है.

इसी के पीछे-पीछे आई फिल्म ‘स्टार’ जिसके संगीतकार थे बिड्डू और गायक यही – भाई-बहन की जोड़ी. कुमार गौरव-रति अग्निहोत्री और पद्मिनी कोल्हापुरे को लेकर बनी यह फिल्म तो नहीं चली लेकिन इसके गीत खूब चले. ख़ासकर नाज़िया का गाया ‘बूम-बूम’. बहुत कमाल की धुन और कमाल की गायकी.

फिल्म की नाकामी से खुद को अलग करके इन सारे गीतों को ‘बूम-बूम’ नाम से एक एल्बम के रूप में बाज़ार मे उतारा गया. और यह भी खूब बिका. ख़ासकर इसका वीडियो. केन घोष के निदेशन मे बने इस वीडियो ने हिन्दी वीडियो बनाने वालों के लिए एक मानक और मार्गदर्शक का पद पा लिया. इसमें बिड्डू खुद भी मौजूद हैं.

इसके बाद आए 1984 में ‘यंग तरंग’. 1987 में ‘हाटलाईन’ और 1992 में आखिरी एल्बम ‘केमरा केमरा’. हालांकि इन एल्बम्स में गीत रचना वाले पक्ष में कुछ भी उलेखनीय नहीं है लेकिन अपनी बात कहने के लिए जिस तरह शब्दों को धुन की रस्सी से बांधा गया है वो काफी मज़ेदार है. मज़ेदार इसलिए कह रहा हूं कि यह कोशिश उन 20-22 साल के जवान बच्चों की है जो शायर नहीं हैं लेकिन अपनी बात कहना चाहते हैं. अब जैसे ‘हाटलाईन’ का यह गीत ‘देखा नहीं मैने कभी तुझको – टेलीफोन प्यार / तीन-तीन,दो-दो,चार-चार / मुझको हो  गया है तुमसे प्यार / तेरी आवाज़ ही, सुनू मैं बार-बार / मुझको हो गया है टेलीफोन प्यार’.

अच्छा एक मज़े की बात है. बात ये है कि नाज़िया और ज़ोहेब पाकिस्तान में भी कल्ट फिगर की तरह पूजे जाने लगे थे. हर तरफ उन्हीं की गूंज थी लेकिन उस समय मुल्क में जनरल ज़िया-उल-हक़ की हुकूमत थी जिसने लोगों के सामान्य जीवन पर भी अजब-अजब पाबंदियां लगा रखी थीं. ऐसी ही एक पाबन्दी थी औरतों के नाचने पर. पीटीवी पर किसी महिला गायिका को गाते समय नाचते या झूमते हुए दिखाने पर पाबन्दी थी.

उस समय नाज़िया का क्रेज़ ऐसा था कि उसे दबाया भी नहीं जा सकता था. ऐसे मे टीवी वालों ने नाज़िया को झूमते-नाचते हुए गाने सो तो नहीं रोका लेकिन कैमरा इस तरह पोज़ीशन किया कि उसके शरीर का सिर्फ ऊपरी हिस्सा ही दिखाई दे सके, नाचते हुए पांव नहीं.

लेकिन गुड़िया तो ठहरी गुड़िया. उसे अपने नाच-गाने से ज़्यादा ज़माने की खुशियां प्यारी थीं. सो गुड़िया ने एक संस्था बनाकर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में ज़रूरतमन्द और शारीरिक रूप से अशक्त बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. आगे चलकर उसने ड्र्ग्स के नशे में डूबे युवाओं में जन-जागृति और नशा-मुक्ति के लिए भी एक संगठन बैन (बैन अगेन्स्ट नार्कोटिक्स) बनाकर काम शुरू कर दिया. उनका आख़िरी एल्बम ‘केमरा केमरा’ इसी उदेश्य से बनाया गया था.

यह सब उस वक़्त जब नाज़िया को फेफड़े का केंसर हो चुका था. इलाज के बाद डाक्टरों ने उसे स्वस्थ्य भी घोषित कर दिया लेकिन कुछ अर्से बाद यह ग़लीज़ बीमारी फिर आ धमकी.1995 में पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध उद्योग घराने के चश्मे-चिराग इश्तियाक़ बेग से शादी भी कर ली. पति के अनुसार यह लव-मैरिज और मां के मुताबिक यह अरेंजड मेरिज थी.

इस विवाह के बाद नाज़िया का जीवन दुखों से भर गया. पति-पत्नि के बीच भारी मतभेद होने की वजह से बात तलाक़ तक जा पहुंची. लेकिन इस वक़्त तक उनके एक बेटा भी हो चुका था और साथ ही अन्दर कहीं छुपकर बैठी कैंसर ने भी अपनी गर्दन बाहर निकाल ली.

नाज़िया तलाक़ की अर्ज़ी लगाकर अस्पतालों में बीमारी से जूझती रही. कल तक ज़माने भर के लिए खुशियां बांटने वाली गुड़िया एक मुस्कराहट की मोहताज थी. और आख़िर 13 अगस्त 200 को महज़ 35 बरस की उम्र में मासूम सी गुड़िया ने आंखें बन्द कर लीं.

ज़माना अब तक गाता है ‘आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी मे आए, तो बात बन जाए’ लेकिन जैसा कि चचा ग़ालिब कह गए हैं ‘क्या बने बात जहां, बात बनाए न बने’.

गुड़िया, तुम जहां भी हो ख़ुश रहो. मेरे लिए तो यूं भी गुड़िया किसी दिन एक शो रूम में रखी दूर से देखने की चीज़ थी. यह गुड़िया दिखाए तो नहीं देती लेकिन सुनाई आज भी देती है.

और…

और अब बस. सिर्फ जय-जय.

(दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट ‘रसरंग’ में २५ जुलाई २०१० को प्रकाशित)

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468 ad
  1. Rakesh sharma says:

    wow
    long awaiting theme
    highly appreciated sir
    thanks for sharing such a nice information to us and viewer.
    i also wish if you please write a note on music directot gilam mohd of paakeeza he is belong to bikaner
    …In music composition, he first became an assistant, to noted music director, Naushad in Kargar Productions, and worked with him and Anil Biswas, for over 12 years, before giving music independently, in the film ‘Tiger Queen’ (1947). He went on to give music in many memorable films and even won the 1955 National Film Award for Best Music Direction for his film Mirza Ghalib (1954). His score for Pakeezah is still considered one of the all time great music scores in Indian Cinema.
    will you please write some thing………………
    awaiting………………

  2. बहुत अच्छा लगा. इस तरह के भूले बिसरे कलाकारों के बारे में पढ़ने के लिए भोपाल पोस्ट पर आना आदत बनती जा रही है. धन्यवाद.

  3. shaffkat alam says:

    Sir
    Maine Bhaskar mein lekh padha to der tak sochta raha ke insan kitna bebas hota hai.Kuch bhi to uske hath mein nahi.Ham sabhi ne kabhi na kabhi khilkhelati hakikat ko rula dane wala sapna bante dekha hai. Bakol Allama Iqbal
    Teri dunia me mein mahkoom aur majboor/Meri duniya mein teri badshahi.
    Nazia Hasan sachmuch woh gudia thi jiske yaad dila kar ap ke lekh ne, lagbhag sabhi pathokon ko udas kiya hoga.Woh aj Chandmama ki duniya mein hai. Malik use jhilmil taron mein unchi jagah de.
    SHAFFKAT

  4. shaffkat alam says:

    NAZIA ke surili awaz ke saath Maajaz sahib ka sher yaad aya hai
    Woh to chale gaye saaz e hasti ched kar
    Ab to bas awaz hi awaz hai—— aur raat gaye khilkilati awaz neend ko bechain kar rahi hai.AAP JESA KOI MERI ZINDAGI MEIN AYE.DOOR SITARON SE PARE SE YEH AWAZ AA RAHI HAI.
    Nazia tum aj bhi mere jase deewano ke liye geeton mein jawan gudia ho.
    shaffkat

  5. आदतन और नियमित भास्कर के रसरंग के माध्यम से केसवानी जी की लेखनी से रूबरू होता हूँ आज पोस्ट भी देखा . हमेशा की तरह जानकारीपूर्ण और रुचिकर केसवानी जी !

  6. नाजिया के इस गीत के दीवाने हम भी रहे हैं. ईश्वर बहुत ही क्रूर और बेदिल है (अगर है,) नहीं तो इतनी बेहतरीन आवाज की मलिका सुनने का मौक़ा दुनिया को अवश्य ही सौ साल तक देता.

    इस गीत को यू ट्यूब पर यहाँ देखें-

    http://www.youtube.com/watch?v=5o5C1yUlx6w

    ऑडियो तथा गीत (लिरिक) यहाँ पर –
    http://www.radioreloaded.com/tracks/?6433

  7. हर रविवार नियमित रूप से पढ़ रहा हूँ. मनोहारी सिंह के बाद आपने नाजिया हसन को याद किया. बहुत कुछ हमें भी याद कराया.

  8. “Aapas ki baat” her sunday ko intazaar rehta hai ki AAJ NAYA KYA??Bahut hi aacha laga Nazia Hassan ke baare main .main apni purani baat batata ho jab main 6th standard main tha us waqt papa ji RECORD PLAYER(Philips)ka le kar aaye the aur us ke saath 2 LP the,1-runa laila,2- Nazia Hassan(Boom Boom)aur jo maza us waqt inke songs(disco) ka hamare parents main tha use aap ne dobara yaad kara diya

  9. S. M. Asghar says:

    Nazia Hasan ke bare mein dil ko chhoo lene wal lekh parha. Aap ka dil se nikle hue alfaz sabit kare hein ke ke aap bahut azeem writer hain.

  10. surinder sharma says:

    I LIKE THE MOST RIGHTING OF KESWANI

  11. Good article..
    I just found this site with exclusive pictures of Nazia Hassan and wanna share with you guys.
    http://www.naziahassan.org/

  12. deepak kumar says:

    write articles on wifes of vinod khanna & vinod mehra

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