
जाता हूँ मैं, मुझे अब न बुलाना
जाता हूँ मैं, मुझे अब न बुलाना
राजकमार केसवानी
क्या अजब दुनिया है. आज रोने का दिन है और मुझे बात भी करनी है। आप जानते हैं न मनोहारी दादा नहीं रहे ! मशहूर सेक्सोफोन वादक मनोहरी सिंह। संगीतकार जोड़ी बासू–मनोहरी वाले मनोहारी दादा। आर.डी.बर्मन के सदा सहायक मनोहारी दादा ।
कितने हज़ार गीत होंगे जिन्हें हम सब सुनकर मस्त होते रहते हैं। संगीतकार,गायक,गीतकार की वाह-वाह करते रहते हैं लेकिन इन कई हज़ार गीतों में जादू पैदा करने वालों में एक जादूगर का नाम है – मनोहारी सिंह। अपनी फ्ल्यूट (स्टील की बांसुरी), सक्सोफोन और मेंडोलिन के जारी उन्होंने हिन्दी सिने संगीत में कितने रंग भरे हैं. ज़रा याद कीजिए- ‘ जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी, बहारों के देस जा रे’ (माया), ‘तुम्हे याद होगा कभी हम मिले थे’ (सट्टा बाज़ार), ‘अजी रूठकर अब कहाँ जाइयेगा’,और ‘ बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है’ (आरजू), ‘अछा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना’ (काला पानी) , ‘रुक जा ओ जाने वाली रुक जा’ (कन्हैया), ‘आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़ुबान परा (ब्रहमचारी), ‘शोख नज़र की बिजलियाँ, दिल पे मेरे गिराए जा’ (वो कौन थी), ‘है दुनिया उसी की , ज़माना उसी का’ (काश्मीर की कली)’, ‘हुजूरे वाला, जो हो इजाज़त ‘ (ये रात फिर न आएगी), ‘गाता रहे मेरा दिल’ और ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं'(गाईड), ‘जाग दिले-दीवाना, रुत जागी वसले यार की’ (ऊंचे लोग), ‘जाता हूँ मैं मुझे अब न बुलाना’ (दादी मां), ‘रात अकेली है’ (ज्वेल थीफ), ‘रूप तेरा मस्ताना’ (आराधना), और आर.डी. बर्मन के तो लगभग सारे संगीत में कहीं वादक तो कहीं अरेंजर तो कहीं किसी और रूप में मौजूद हैं ही।
और अगर कुछ भी याद न हो तो सबसे ताज़ा यादा है अभी थोड़े दिन पहले ही सोनी टीवी के शो ‘इन्डियन आईडल ५’ पर आशा भोंसले के साथ भी मनोहारी दा अपने सक्सोफोन के साथ गुज़ारे दौर का जादू जगाते हुए दिखाई दिए थे।
मन हर लीनो
मनोहरी सिंह नेपाली मूल के संगीतकार थे। १९४१ में उनके दादा नेपाल से आकर कलकत्ता में बस गए थे। वे ट्रम्पेट प्लेयर के तौर पर ब्रिटिश फ़ौज की बैंड के सदस्य के रूप में यहाँ लाए गए थे। थोड़े अरसे बाद पित्ता भी यहीं आ गए और कलकत्ता में ही पुलिस बैंड में बतौर बैगपाईप और क्लार्नेट वादक नौकरी पा गए।
८ मार्च १९३१ को जन्मे मनोहरी की उम्र उस समय १०-११ बरस की थी। मगर घर में संगीत के माहौल के चलते वे भी संगीत में अभी से गोते लगाने लगे थे। पित्ता घर पर अपने शौक से फ्ल्यूट बजाते थे सो मनोहरी ने भी उसे ठान लिया। फिर मेंडोलिन।
इसी तरह उम्र के बढ़ाते पड़ाव के साथ शौक भी बड़ता गया। सौभाग्य से मुलाक़ात हो गई जोसेफ न्यूमेन से। जोसेफ हंगरी मूल के संगीतकार थे, जो कलकत्ते में रह रहे थे, उनके पित्ता सक्सोफोन बजाते थे। मनोहरी सिंह भी इसी साज़ से दिल लगा बैठे। और दिल लगाया भी ऐसा कि अस्थमा के मर्ज़ के बावजूद इसे ज़िंदगी भर फूंक-फूंक कर ज़माने भर में इसकी सुगंध फैलाते रहे।
कलकते में यह संगीत का एक ऐसा दौर था कि यहाँ के होटलों और नाईट क्लब्स में बड़े नामी कलाकार काम कर रहे थे। मनोहरी भी कलकत्ता सिम्फनी आर्केस्ट्रा के साथ जुड़े रहने के अलावा एक नाईट क्लब ‘फिर्पो’ के साथ १९५८ तक काम करते रहे। यह वही समय था जब संगीतकार नौशाद ने मनोहरी और उनके साथ बासू चक्रवर्ती को एक कार्यक्रम में बजाते देखा और संगीतकार सलिल चौधरी को सलाह डी कि इन दोनों कलाकारों को बंबई ले आएं।
आखिर १९५८ में सलिल दा उन्हें बंबई ले गए। सलिल दा के पास उस समय बहुत काम न था सो उन्होंने संगीतकार एस.डी.बर्मन से मिलवाया। बर्मन दा ने उन्हें पहला मौक़ा दिया फिल्म ‘सितारों से आगे’ में।
बर्मन दा से पहली मुलाक़ात के समय ही मनोहारी दा की उनके बेटे आर.डी.बर्मन उर्फ़ पंचम से भी मुलाक़ात हो गई। जिस समय सलिल दा मनोहारी को लेकर बाम्बे लैब पहुंचे जहां ‘सितारों से आगे’ की रिकार्डिंग हो रही थी, तो वहां पंचम, जयदेव, और लक्ष्मीकांत भी मौजूद थे। लक्ष्मीकांत उस समय बतौर साज़िन्दा मेंडोलिन बजाते थे और जयदेव बर्मन दा के सहायक थे।
मनोहारी की यहाँ से जो दोस्ती और मोहब्बत का रिश्ता बना वो तमाम उम्र बना रहा। ‘छोटे नवाब’ से लेकर पंचम की आख़िरी चर्चित फिल्म ‘१९४२ अ लव स्टोरी’ तक। आप में से जिसने भी इन्डियन आइडल ५ वाला शो देखा होगा कि किस तरह आर.डी.बर्मन के ज़िक्र भर से दादा भावुक हो उठे थे। आर.डी.बर्मन की शख्सियत का यही कमाल है कि उनके साथ काम करने वाले भाग्यशाली लोगों की तो छोड़ दें, हम जैसे सिर्फ उनके गीत-संगीत से उन्हें जानने वाले भी आज तक उनकी दीवानगी से बाहर नहीं आ पाए हैं। बल्कि सच तो यह है कि ज्यों-ज्यों वक़्त गुज़रता है त्यों-त्यों यह दीवानगी बड़ती ही जाती है।
मनोहारी सिंह ने लगभग सारे बड़े संगीतकारों के साथ काम किया। जैसा कि शरू में जो मैंने गीत गिनाए थे, यह बात उसी से ज़ाहिर हो जाती है। अब जैसे मदन मोहन जी के साथ ‘वो कौन थी’ के अलावा मेरी यादाश्त से फिल्म ‘हकीकत’ के मस्ती भरे गीत ‘मस्ती में छेड़ के तराना कोइ दिल का, आज लुटाएगा खज़ाना कोइ दिल का’ में सेक्साफोन और ‘हंसते ज़ख्म’ में ‘तुम जो मिल गए हो’ में की फ्ल्यूट बजाया है।
शंकर-जयकिशन ने ‘ब्रहमचारी’ और ‘आरजू’ के अलावा फिल्म ‘प्रोफ़ेसर’ में क्या कमाल का पीस ‘आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ, मोहब्बत में इतना न हमको सताओ’ में बजाया है कि गीत याद करो तो बोलों से ज़्यादा सेक्साफोन की लहराती-बलखाती धुन ज़हन में गूजती रह जाती है।
इसी तरह मनोहारी दादा ने एक बार दुबई में बसे मेरे अदभुत संगीत प्रेमी मित्र डाक्टर चंद्रशेखर से कहा था कि उनके साज़ का सबसे अदभुत इस्तेमाल प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) ने फिल्म ‘अमीर गरीब’ के गीत ‘मैं आया हूँ ले के साज़ हाथों में’ में किया है। वाह! सचमुच अगर किसी को इस साज़ की गहराई और छिपी हुई ध्वनियों को जानना हो तो इसे सुनना चाहिए।
इसका मतलब यह नहीं कि फिल्म ‘गाईड’ के ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं’ में बजाया गया टुकड़ा कुछ कमतर है। आप ज़रा गौर से सुनकर देखें कैसे सेक्साफोन धीमे से ‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना / जैसे बहार आने पर तय है फूल का खिलना’ जैसी पंक्तियों को शब्द की परछाईं बनकररूह अत्ता करता है। या फिर अंतरे में बिना शब्द सारे माहौल को बयान करना। पूरे के पूरे गीत में ही सेक्साफोन आत्मा की तरह प्रवाहित होता है।
ओ.पी.नैयर साहब के लिए तो उन्होंने ‘है दुनिया उसी की’ में दुःख को ऐसा सांगीतिक एक्सप्रेशन दिया है मानो दुःख भी इस दुःख से तड़प उठा हो।
कितने-कितने बेमिसाल गीत हैं और क्या-क्या उसमें कलाकारी हुई है। अब जैसे जयपुर में बसे मेरे संगीत प्रेमी मित्र पवन झा ने आज ही मुझे एक किस्सा सुनाया। फिल्म ‘माया’ में सलिल दा ने एक गीत रचा है ‘जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी’। इस गीत की शुरूआत की फ्ल्यूट के स्वरों से होती है और कुछ सेकण्ड बाद ही सेक्साफोन आ जाता है। उस दिन रिकार्डिंग के लिए एक साजिन्दे के न आने की वजह से सलिल दा ने यह दोनों साज़ मनोहारी दा को बजाने की जिमेदारी सौंपी। फ्ल्यूट जितनी हल्की-फुल्की, सेक्साफोन उतनी ही भारी लेकिन कुछ देर के रियाज़ के बाद ही इस काम मनोहारी सिंह ने बखूबी कर दिखाया।
आर.डी.बर्मन तो एक ऐसी चीज़ थे जो हर काम को अपने अलग अंदाज़ से करने के आदी थे। मनोहारी सिंह से लोग फ्ल्यूट और सेक्साफोन बजवाते थे लेकिन आर.डी। ने उनसे सीटी भी बजवाई। फिल्म ‘कटी पतंग’ के गीत ‘ये शाम मस्तानी, मदहोश किए जाय’ की सीटी याद हैं न ?
इसी तरह फिल्म ‘प्यार का मौसम’ में बजवाया मेंडोलिन। ज़रा याद कीजिए ‘तुम बिन जाऊं कहाँ, कि दुनिया में आ के , कुछ न फिर चाहा सनम, तुमको चाह के’। मोहम्मद रफ़ी वाला वर्शन सुन लें। मज़ा आ जाएगा। एक ऐसा साज़ जिसके उस्ताद हुए या तो महान संगीतकार सज्जाद और उसके बाद लक्ष्मीकांत, उसे मनोहारी दा ने क्या बजाया है।
एक और बात। मनोहारी दा ने अपने दोस्त और आर.डी.बर्मन के दूसरे सहयोगी बासू चक्रवर्ती के साथ मिलकर कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया। १९७६ में महमूद की ‘सबसे बड़ा रुपैया’ में ‘ना बीबी न बच्चा, न बाप बड़ा ना मैया’, ‘दरिया किनारे इक बंगलो’ और ‘बही जइयो ना रानी बही जइयो ना’ तो अब तक याद है न। इसके अलावा ‘चटपटी’ (८१) और ८३ में ‘कन्हैया’ बासू-मनोहारी की इस जोड़ी ने दी।
क्या-क्या याद करूं ? अब तो हर दिन ही सिर्फ याद करना है। जब-जब कोई गीत बजेगा, कान बेसब्री से उस साज़ का इंतज़ार करेंगे जिनसे मनोहारी दा की आवाज़ सुनाई देगी।
और…
१३ जुलाई २०१० को जब मनोहारी दा की म्रत्यु हुई उस समय उनकी उम्र ७९ साल की थी। मगर कमाल यह है कि उन्होंने अपनी तमाम उम्र में कभी बजाना नहीं छोड़ा। २००३ की फिल्म ‘चलते-चलते’ के लिए भी बजाया तो २००४ की फिल्म ‘वीर जारा’ में भी बजाया।
म्रत्यु से कुछ दिन पहले ही उन्होंने संगीतकार शंकर-जयकिशन की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में बाकायदा परफार्मेंस दिया था। ऐसे जीवट के महान संगीतकार को सौ-सौ सलाम।
और हाँ। अब आपको भी सलाम। मतलब अगले हफ्ते तक की जय-जय।
(दैनिक भास्कर के साप्ताहिक परिशिष्ट ‘रसरंग’ में १८ जुलाई २०१० को प्रकाशित)
Mr. Keswani is amazing treasure trove of such incredible information. His passionate love for the
film music, it’s musicians is all in ample evidence here. He is like a walking encyclopaedia of film history!
The piece it self is a lament in mandolin,played with touching melancholy. Superb.
Great tribute to a great legend.
Thanks for sharing the link.
वाह केसवानीजी, आनन्द आ गया..!
Jinhe sunte aaye the aabtak
Bina jane, bina pahachane,
Unhe dil me basa diya,
unke SUR aur apke SHABDON ne
…palkon ko BHIGO diya….
GR8
बहुत सुंदर। आपकी कलम में जादू है।
Bhaskar (rasrang) mein padh kar apko mail kar chuka hun.Phir likh raha hoon apke shabdon mein he so salam Manohari Da ko aur ap ki kalam ko bhi.Ap udas bhi karte hain to bhi karine se.Zindabad
SHAFFKAT
सम्मान्य केसवानी जी,
सादर वन्दे,
सदा की भांति इस बार भी आपकी कलम ने हमारे दिल के तारों को छुआ.
शायद आपको इस बात का इल्म ना हो कि आप अपनी कलम के माध्यम से
समाज के कितने बड़े वर्ग का मानसिक पोषण कर रहे हैं…
मगर मैं ये बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपकी कलम का जादू
हर रविवार हज़ारों-हज़ारों के दिल-ओ-दिमाग पे छाया रहता है..
मेरी माताजी [उम्र ८५ वर्ष] की पैदाइश कराची की है और उन्हें हिंदी का ज्ञान अधिक नहीं है.
वे गुजराती, सिन्धी, उर्दू, अंग्रेजी और मराठी की जानकार हैं मगर
रसरंग में राज कुमार केसवानी और जाहिदा हिना को पढना कभी नहीं भूलतीं…
पुन: साधुवाद…
Keswaniji it is quite simply brilliant. While Manohariji was somewhere in the recessess of my consciousness, I never knew that his magic played a part in such incredible melodies. I think that bit about his initial stint in Calcutta also transports you to a moment in history when the world war, national movement, Independence and easier mobility across borders had created these ‘happenning musical’ enclaves in port cities like bombay and cal..all manner of Europeans, Anglo’s, Jews, Armeninans etc created a context for the growth of new eclectic musical trends into a pot pourri- subsequently mainstreamed by great musicians like SD, OP, Salil and SJ in bollywood.
Shree Manohari singh se mai life me (year 2007)pahli bar programme ke intervel ke samay stage per mila.film “Professor” ke gane ke bareme
unse furmaish kee aur maine kaha kee “ye geet muze school life se bahut
pasand hai”, intervel ke bad unhone pehle hi woh geet bajaya. Mai
khushise pagal hogaya, unke har programme me once more kaha .unhone meri ichha puri ki. mai apne aapko nasibvan samzta hu Un jaise bade kalakarne mera maan rakha.
MANOHAR DA KO MERA SALAM
respected keshwani ji
you are a real genius person,because you explore the neev ke pathar
,the root level men ,to which we cant know because they were not fame as such
the man behind the melodious rhythm and ever remember able song
amazing treasure of such incredible information. His passionate love for the film music, it’s musicians is all in ample evidence here. i am proid to say in your esteem honor that you are a walking encyclopaedia of film history!
god bless you
and we always wait for your such a nice information of hidden artiste
thanks a lot a love to core of heart
rakesh sharma
bikaner
Respected keswani ji,
A Great tribute to a great legend.
Manohari singh ji ko pahli baar INDIAN IDOL main dekha.. unke sangeet ko suna to bahut baar tha per pata na tha ki ye wahi hain jinke sangeet pe hum lakhon baar jhoomte rahe hain.
amazing treasure trove of such incredible information for late shree Manohari sing.
मनोहारीसिंह के जाने से उन तमाम धुनों की यादें ता़ज़ी हो आईं हैं जिनमें उनका यह दमदार फ़ूकवाला बाज बजता था. जब पंचम दा को लता पुरस्कार मिला तब उनके इन्दौर आने प्रसंग बना था लेकिन बस किसी वजह से वह रह गया. बाद में मुम्बई में एक प्रायवेट कंसर्ट में उनको सुना था एक संगीतप्रेमी के घर. लिहाज़ा खाना खाते वक़्त बात भी हुई और यह ख़ुलासा भी उन्होंने किया कि कई साज़िन्दे ऐसे थे इंडस्ट्री में जिन्हें नोटशन्स पढ़ कर बजाने का श उ र मनोहारी दा ने सिखाया था. उन्हें अचानक पंचम के फ़िल्म इंडस्ट्री से ख़ारिज किये जाने का मलाल भी था. उन्होंने ये भी कहा था कि वक़्त बदलेगा और उसके हिसाब से संगीत भी. वे इस बात में पक्का यक़ीन रखते थे कि पंचम के कम्पोज़िशन्स कालजयी हैं लेकिन इस बात का ख़ासा मलाल था कि आँधी और छोटे नवाब जैसी फ़िल्मों में पंचम के काम का ख़ास नोटिस नहीं लिया गया……ये सारी बातें उस रात मुम्बई में हुईं थीं ..अब सिर्फ़ याद बाक़ी है…प्रणाम मनोहारी दा….
Zanab Keswaniji
Namastey
Aap ki kalamkari ke to quayal the hi ab aapki suraghrasi ke bhi quayal ho gaye.Imarat ki khubsurati ki sabhi tareef karte hein parantu neev ke pather ki shahadat kisne dekhi hai? Manohari Singhji ke bare main jankar achha laga aur afsos bhi hua.Unke sangeet ke roop mein wo amar raheinge.Sahir ki TazMahal per likhi nazm ki aapne yaad dila di jisme unhone ek sangtarash ke muquable Shahjahan ko haqeer kar diya tha.Aapne S.D. ya R.D. ko chhota nahein kiya parantu Manohariji ko yathochit samman diya,sadhuvad.
Respected Rajkumar Keswani Ji
Although I had sent you a mail, but in my mail I had forgotten to tell you one more thing regarding the article on Late Sh.Manohari Singh Ji, Sir I love to hear sexophone since my childhood and till date I never knew that who had played the sexophones in old bollywood hits, its just because of your article I came to know that Sh. Manohari Singh Ji was behind of Sexophone music in bollywood. If I can say that he may be called God of Sexophone it won’t be a surprise.
Jai Jai
Dear Rajkumar Keswaniji,
Really a great article, I have attended 7 to 8 concerts of
Late Manohari Da, as It was my previlage to be in audience.
Hats off ! to him & to his contribution into Hindi Cine Music,
apart from that he was a really a very lovable personality.
I totally agree with you Manishji.
Sandeshji, you are a blessed one to have heard him these many times. He indeed was a great man and a great musician.
please write articles on movies of sohrab modi movies based on heer ranjha bollywood remakes of bollywood movies deepakkumar78000@gmail.com mob 09872025607
I think it was Laxmikant (of LP fame) who played the Mandolin in Tum Bin Jaun Kahan. You say it was Manohari Da. Could you please verify this information?