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“अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…” (साहिर-3)

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अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…

राजकुमार केसवानी

देखा आपने, पिछली बार पूरा का पूरा ‘ तू हिंदू बनेगा, न मुसलमान बनेगा’ सुना दिया लेकिन अपनी धुन में फिल्म का नाम तक नहीं बताया. ख़ैर, आप में से बहुत लोग जानते ही हैं कि यह 1959 में रिलीज़ हुई बी.आर. फिल्म्स की ‘धूल का फूल’ का गीत है फिर भी मेरा फर्ज़ बनता है बताना. सो बता दिया.

एन. दत्ता के साथ यूं तो ‘चन्द्रकांता’(56), ‘दीदी’ (59), ‘धर्मपुत्र’ (61), ‘चान्दी की दीवार’ (64) और ‘नया रास्ता’ (70) जैसी कई फिल्मों में गीत लिखे और क्या ख़ूब लिखे.

इसी तरह उन्होने संगीतकार रवि , रोशन , जयदेव और ख़य्याम के साथ भी बेहतरीन काम किया लेकिन सोचता हूं कि संगीतकार के साथ वाली बात को यहीं छोड़ दूं. वजह यह कि मुझे लगता है कि जोड़ी की बजाय इस बात को जानना ज़रूरी है कि साहिर के पास अभिव्यक्ति की कितनी अदभुत विविधता थी.

अब जैसे उनके उस रंग से शुरू करें जिसके लिए वह बेहतर जाने जाते हैं. इंक़लाबी शायर, समाजी मसलों का शायर, ग़रीब-मज़दूर-किसान के हक़ में कलम उठाने वाला कामरेड. जिन्हे नाज़ है हिन्द पर वो कहां है’ (प्यासा-57), वो सुबह कभी तो आएगी’ (फिर सुबह होगी-58), साथी हाथ बड़ाना साथी रे’ (नया दौर-57), समाज को बदल डालो, ज़ुल्म और लूट के रिवाज को बदल डालो’(समाज को बदल डालो-70),‘पोंछ कर अश्क अपनी आंखों से मुस्कराओं तो कोई बात बने, सर झुकाने से कुछ नहीं होगा, सर उठाओ तो कोई बात बने’ (नया रास्ता-73) वग़ैरह.

इस बात को ज़रा एक बार सोचकर देखियेगा. साहिर ने समाज के पीड़ित-शोषित वर्ग की आवाज़ को अपने गीतों के ज़रिये जिस बुलंदी के साथ घर-घर पहुंचाया, उसकी कोई दूसरी मिसाल, सिनेमा या सिनेमा के बाहर भी नहीं है.

साहिर जैसे ऊंचे पाए के शायर ने अन्याय के विरुद्ध अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए पैरोडी का सहारा लेने से गुरेज़ नहीं किया. उन्होने महाकवि अल्लामा इक़बाल की मशहूर नज़्म ‘सारे जहां से अछा हिन्दोस्तां हमारा’ को बेघर, फुटपाथ पर सोने वालों के हक़ में इसे बदल कर कहा ‘चीनो-अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा / रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा’. कवि प्रदीप ने फिल्म ‘नास्तिक’ (54) में गीत लिखा ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान’. साहिर ने मदन मोहन के साथ मिलकर फिल्म ‘रेल्वे प्लेटफार्म’ (55) में इसकी पैरोडी बना दी – ‘देख तेरे भगवान की हालत क्या हो गई इंसान, कितना बदल गया भगवान’.

इंक़लाब-ज़िन्दाबाद के साथ अपनी भी एक छोटी-मोटी, भले ही नाकाम सी आवाज़ तो हमेशा रही है सो साहिर की इंक़लाबी शायरी ने तो हमेशा ही मन को झकझोरा लेकिन अपने बारे में एक राज़ की बात और बताता हूं. नाकामियों ने बहुत लड़कपन में ही दामन थाम लिया था. न जाने क्यों दो वक़्त की पूरी रोटी मिलने के बावजूद रूह की भूख हमेशा बनी रहती थी. बल्कि बनी ही रहती है. सो नादानी की उस उम्र में भी दिल को तड़पाने वाले ‘दर्दी गीत’ बहुत अछे लगते थे.

मोहल्ले में जलील भाई पीठे वाले ने एक एक्सीडेंटशुदा बेडफोर्ड ट्रक का बिना इंजन का ढांचा गली में पटक रखा था. उसके ठीक बगल में बिजली का खम्बा था, जिसका बल्ब हमेशा ख़राब रहता था. सो बस उसी अन्धेरे में बिना कहीं पहुंचने वाली उस गाड़ी में बैठकर अकेले में अक्सर जो गीत गाता था, आगे चलकर पता चला वो साहिर लुधियानवी के हैं. ख़ासकर ‘मैने चान्द और सितारों की तमन्ना की थी, मुझको रातों की स्याही की सिवा कुछ न मिला’.(चन्द्रकांता-56).

आगे चलकर जब-जब दर्द ने पनाह ढूंढी, अकेलेपन और तन्हाई की टीस ने ज़बान मांगी तो ज़्यादातर साहिर की शायरी ने आ-आ कर सहारा दिया. ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला / हमने तो जब कलियां मांगी, कांटो का हार मिला’ (प्यासा), तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं’(हाऊस नम्बर 44), ‘दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना, जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना (फंटूश-56), ‘अश्कों में जो पाया है, वो गीतों में दिया है / उस पर भी सुना है कि ज़माने को गिला है’ (चान्दी की दीवार-64) टाईप के पच्चीसों गीत.

और हां, इन सबसे ऊपर. ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनो’. ऐसी ही रचनाएं होती हैं जो अपने से जुड़े हर शख्स को ऊंचा उठा देती हैं. कहते हैं – ‘तारुफ रोग हो जाए, तो उसको भूलना बेहतर / तालुक बोझ बन जाए, तो उसको तोड़ना अछा / वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाआ न हो मुमकिन / उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर तोड़ना अछा’.

और जब मस्ती का रंग हो तो साहिर फिर कमाल कर जाते हैं. ‘ऎ मेरी टोपी पलट के आ, न अपने फंटूश को सता’ (फंटूश), ‘सर जो तेरा चकराए’ (प्यासा),चाहे कोई ख़ुश हो, चाहे गालियां हज़ार दे / मस्तराम बनके ज़िन्दगी के दिन गुज़ार दे’.

साहिर तब और भी इंसान नज़र आते हैं जब वो इंसानी रिश्तों को ऐसे मकाम पर पहुंचा देते हैं जहां से बाकी सारी चीज़ें छोटी नज़र आने लगती हैं. अब जैसे फिल्म ‘काजल’ में एक बहन कहती है – ‘मेरे भैया, मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन / तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ न लूं’. दूसरी बहन कहती है ‘मेरे भैया को सन्देसा पहुंचाना, रे चन्दा तेरी जोत बड़े’ (दीदी).

मोहब्बत को इंसान की ज़िन्दगी की सबसे कीमती और सबसे आला तरीन नियामत बताने वाले इंसानियत के आशिक़ इस शायर ने फिल्म ‘बरसात की रात’(60) की अपनी महान क़व्वाली ‘ये इश्क़,इश्क़ है इश्क़,इश्क़’ में कहा है ‘इश्क़ आज़ाद है, हिन्दू न मुसलमान है इश्क़ / आप ही धर्म और आप ही ईमान है इश्क़ / अल्लाह और रसूल का फरमान इश्क़ है / यानी हदीस इश्क़ और क़ुरान इश्क़ है / गौतम का और मसीह का अरमान इश्क़ है / इंतेहा ये है कि बन्दे को ख़ुदा करता है इश्क़’.

इश्क़ के इस पुजारी की रुमानियत में कितने ख़ूबसूरत रंग कितनी भीनी-भीनी महक थी. ‘छू लेने दो नाज़ुक होंठों को, कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये, कुदरत ने जो हमको बक्शा है, वो सबसे हसीं ईनाम है ये’ (काजल-65), ‘ और फिर वही ‘हम आपकी आंखों मे इस दिल को बसा दें तो’ (प्यासा), ‘बरसात की रात’ में ‘ ‘ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात/ एक अंजान हसीना से मुलाक़ात की रात’ और ‘मैने शायद तुम्हे पहल भी कहीं देखा है’. या फिर ‘ताज महल’ (63) के ‘जुर्मे उल्फत पे हमें लोग सज़ा देते हैं / कैसे नादान हैं, शोलों को हवा देते हैं’,पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी’ और ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’, और न जाने कितने-कितने. और हां, वो नायाब गीत जिसे सुनकर आज भी प्यार-मोहब्बत के आगे उम्र के सारे बन्धन टूटते नज़र आते हैं. ‘ऎ मेरी ज़ोहरा जबीं, तुहे मालूम नहीं / तू अभी तक है हसीं, और मैं जवान तुझपे कुरबान मेरी जान, मेरी जान’. (वक़्त- 65).

एकदम कोमल भावनाओ वाला गीत देखना हो तो ये गीत ज़रूर सुन देखें. संगीतकार मदन मोहन मोहन और साहिर ने बहुत कम फिल्में साथ की लेकिन जो कीं क्या कमाल कीं. लत्ता की आवाज़ में ये गीत उसी का एक नमूना है. ‘चान्द मद्धम है, आस्मां चुप है / नीन्द की गोद में जहां चुप है (रेल्वे प्लैटफार्म-55). ‘बस्ती-बस्ती पर्बत-पर्बत गाते जाए बंजारा’ भी इसी फिल्म का गीत है.

आज के दौर में नई पीढ़ी के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल होगा कि किस तरह गुज़रे दौर में साहिर ने औरत हक़ में अपनी कलम को नश्तर बनाकर समाज को उस वक़्त चुभोया है, जब सारा समाज ‘मर्दानगी’ के नशे में चूर था. ये साहिर के बस की ही बात थी कि उसने अपनी कालजयी नज़्म ‘चकले’ में कोठे पर बैठ पेशा करने को मजबूर तवायफ को यशोदा, राधा और ज़ुलेख़ा के साथ खड़ा कर दिखाया. ‘मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी / यशोदा की हम-जिंस (सजातीय), राधा की बेटी / पयम्बर की उम्मत (अनुयायी), ज़ुलेख़ा की बेटी / सना-ख़्वाने-तक़दीसे-माशरिक कहां हैं (जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं).

दुनिया से चाहे जितने नाराज़ी हो. चाहे कहते हों कि ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है’ लेकिन इस अज़ीम शायर का दिल बच्चों को देखकर उम्मीदों से भर जाता है. उसे लगता है कि इस बच्चे के ज़रिये आने व कल को बेहतर बनाया जा सकता है. ‘बच्चों तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की / बापू के वरदान की, नेहरू के अरमान की’(दीदी). ‘भारत मां की आंख के तारों, नन्हे-मुन्ने राज दुलारों / जैसे मैने तुमको संवारा, वैसे ही तुम देश संवारों’ (बहू बेटी), ‘बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे / ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे’ (दो कलियां -68).

भक्ति रस की बात हो तो ‘तोरा मनवा क्यों घबराए रे / लाखों दीन दुखियारे प्राणी / जग में मुक्ति पाएं/ रे राम जी के द्वार से’ (साधना), ‘आना है तो आ राह में कुछ देर नहीं है / भगवान के घर देर है अन्धेर नहीं है’ (नया दौर). मेरी नज़र में हमारी दुनिया की सबसे खूबसूरत प्रार्थना भी साहिर ने ही लिखी है. ‘अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम / सबको सन्मति दे भगवान’ (हम दोनो).

अध्यात्म की पकड़ ऊंचाई देखनी हो तो सर्वकालिक महान गीत ‘मन रे तू काहे न धीर धरे / वो निर्मोही, मोह न जाने, जिनका मोह करे’ यह अन्याय होगा अगर इस गीत को भी बस दो बोल देकर छोड़ दूं. बहुत अर्थवान बाते हैं, सो पूरा ही सुन लें. ‘ इस जीवन की चढ़ती-ढलती, धूप को किसने बान्धा / रंग पे किसने पहरे डाले, रूप को किसने बान्धा / काहे ये जतन करे / मन रे… / उतना ही उपकार समझ कोई, जितना साथ निभा दे / जनम-मरन का खेल है सपना , ये सपना बिसरा दे / कोई न संग मरे / मन रे…

दार्शनिकता की इतनी गहरी समझ है कि सामान्य से पार्टी में गाए गए गीत के शब्द हो जाते हैं ‘आगे भी जानी न तू, पीछे भी जाने न तू / जो भी है, बस यही इक पल है’. (वक़्त). कोई दूसरा गीतकार फिल्म ‘नीलकमल’ कबाड़ी बनकर गीत गाते महमूद के लिए क्या लिखता, पता नहीं, लेकिन साहिर ने की पत्ते के बात – ‘ख़ाली डब्बा, ख़ाली बोतल, ले ले मेरे यार, ख़ाली से मत नफरत करना, ख़ाली सब संसार’.

इसी तरह फिल्म ‘पैसा या प्यार’ में तनूजा जब गीत गाती बेर बेचने निकलती है तो वह गीत एक बड़ी सच्चाई भी याद दिलाता है. ‘बेर लियो-3, हां, मेवा ग़रीबों का, तेरे मेरे नसीबों का’. आपने और भी सामान बेचने वाले या वाली के पात्र फिल्मों में गीत गाकर सामान बेचते देखे होंगे लेकिन उन गीतों में ऐसी कोई बात दिखाई दी क्या ?

मेरे एक दोस्त ने एक बार मेरी इस बात पर ऐतराज़ करते हुए कहा कि ‘ यार वो बेर वाली होकर ऐसे फलसफे की बात करती हज़म नहीं होती’. मैने पूछा ‘ मैने कहा, ओये यारा. सड़क पर बेर बेचती या चने बेचती लड़की लता और आशा की ख़ूबसूरत आवाज़ में, नाचती,गाती हज़म हो जाती है ? और आख़िर, यह बात किसने तय कर दी है कि अपने दम-ख़म पर दुनिया में जीने निकला इंसान अक्ल से भी कमतर होता है ?

और…

और तो यह कि बात तो आज भी खत्म नहीं हुई. एक और फाईनल बात तो बनती है बास. अब आख़िर को आप ही के बार-बार के इसरार की वजह से ही तो फुल बात कर रहा हूं. तो चलिए अगली बार हाज़िर होता हूं साहिर साहब की एकदम फुल ऎंड फाईनल बात के साथ. तब तक. जय-जय.

(दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट ‘रसरंग’ में 25 अप्रेल 2010 को प्रकाशित)

तुम्हारे शहर में आए हैं हम, साहिर कहां हो तुम (साहिर-1)
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा‘ (साहिर-2)
अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम‘ (साहिर-3)
मैं ज़िंदा हूं यह मुश्तहर कीजिये…(साहिर-4)

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  1. shaffkat alam says:

    Koi is line mein farak sabit kar sake to samne aye.Khas tor par nafrat faroshon se appeal hai ise mane ya admi ko uske hal par gine daen.Ak khyal washat ke dor ka likh raha hoon
    is ram aur rahim ke naamo ke ladae mein yaaro
    ik naam admi ka bhi tha ,bechara shaheed ho gaya
    shaffkat

  2. ashvini saxena says:

    this is my favorite bhajan. nothing can be better than this. this is very nice and touching. not only lyrics is great but singer( lata mangeshkar ?)has also put a lot of emotions in this.
    ashvini

  3. shaffkat alam says:

    I was just reading Allah– again and your RUH KI BHOOK wali lines se ik sher janma hai
    Payar ke bikhari ko dard ke siva kuch na mila
    Dil ki jholi ko jab tatola sulagte ratjge nikle
    Khush naseeb hai ap ke is ruh ke bhook ko ghazon, geeton aur literature se bharte hain aur ham par kalam ka amrit barsate hain.Khud Sahir sahib ne kaha hai
    Duniya ne tajurbat o havadis ki shakal mein
    Jo kuch mujhe diya hai, lota raha hoon main
    Shayd sabse sunder tasveeran, geet,noval,lekh,all discoveries aur yun kahun duniya mein jo kuch creative hua hai RUH ki bhook ka janma hai.
    shaffkat

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  1. ‘तुम्हारे शहर में आए हैं हम, साहिर कहां हो तुम’ (साहिर-1) | The Bhopal Post - [...] ‘अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम‘ (साहिर-3) [...]

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